Hey people I have tried to convey my thoughts on what धर्म actually is.
Western culture has totally given a different meaning to धर्म.
Maybe what they think is correct but in reality it doesn't make any sense.
धर्म
यह शब्द शायद हम सभी ने कहीं ना कहीं सुना है, परंतु क्या हम इस शब्द के अर्थ से वाकिफ है?
आज के युग मे यानी कलयुग मे धर्म को जाती से जोड़ा गया है, जो कि सरासल गलत है।
अगर हम Google करे हमे धर्म का अर्थ पता चलता है कर्तव्य या फिर कर्तव्य पालन। यह अर्थ सीधा और सटीक है। परंतु अगर हम गौर फरमाए तो कर्तव्य हर मनुष्य के लिए अलग है। शायद किसी का धर्म किसी के लिए अधर्म हो, या फिर किसी का अधर्म किसी के लिए धर्म।
अगर यह विचार हमारे मन को भेदता है तो हम फिर इसी सोच मे पड़ जाते है के धर्म क्या है।
अगर हम धर्म को ब्रम्हांड या फिर संसार के दृष्टिकोण से देखे तो शायद हम धर्म को समझ सके।
हर व्यक्ति के लिए धर्म का अर्थ अलग है किसी के लिए कर्तव्य, किसी के लिए सही और गलत मे से सही का चुनाव करना और कुछ मंदबुद्धि लोगों के लिए जाति।
क्या हम यह नहीं कह सकते "जो ब्रम्हांड के हित मे हो, जो संसार के लिए सही हो वही धर्म है"।
अगर हम हर चीज़ को संसार के दृष्टिकोण से समझे, तो शायद हम हर अर्थ के अंत तक पहुंच सकते है।
आज के युग मे धर्म को जाति कहना धर्म का अपमान है।
क्योंकि इंसान ने जाति के भी कई सारे टुकड़े कर दिए है।
पर इस संसार मे जाति सिर्फ एक है जो है मनुष्य जाति और मनुष्य जाति का धर्म है इंसानियत और इंसानियत केवल संसार के अतिरिक्त और किसी के बारे मे नही सोचता।